वक्री ग्रहों के विषय पर किसी भी ज्योतिष के विद्यार्थी के ज्ञान क्षुधा को परिपूर्ण करने हेतु मैंने कोशिश की है कि इस पुस्तक में पाश्चात्य एवं वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक सम्पूर्ण अध्ययन आपके समक्ष प्रस्तुत करूँ। इस पुस्तक को मैंने निम्न खण्डों में विभाजित किया है-
*पाश्चात्य ज्योतिष में वक्री ग्रह
*पाश्चात्य ज्योतिष में वक्री ग्रह गोचर
*वक्री ग्रहों द्वारा पूर्वजन्म का कार्मिक सिद्धांत
*वैदिक ज्योतिष में वक्री ग्रह
* वक्री ग्रहों का प्रत्येक भाव में फल
* पाराशरी दशा चक्र में वक्री ग्रह
* गोचर में वक्री ग्रह
* नक्षत्र गोचर में वक्री ग्रह
* प्रश्न कुंडली में वक्री ग्रह
* मेदिनी ज्योतिष में वक्री ग्रह
* ऊर्जा चक्रों पर वक्री ग्रहों के प्रभाव
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लेखक ने 1990 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद कुछ साल नौकरी की, लेकिन पिता जी के कारण कुछ साल बाद अपने पारिवारिक पेशे पुस्तक विक्रय में आना पडा। शीघ्र ही अपना खुद का प्रकाशन शुरू किया, जिसमें जूनियर, हाईस्कूल, इण्टरमीडिएट और डिग्री लेवल तक की लगभग 250 पुस्तकों का लेखन स्वयं किया। इस कारण विभिन्न विषयों में लगातार अध्ययन करने का जुनून धीरे धीरे दीवानगी की हद तक पहुँच गया। कहते हैं प्रारब्ध अपना कार्य जरूर करेगा। लेखक की कुंडली में ग्रहों की स्थिति तथा शनि की महादशा उसे धीरे-धीरे ज्योतिष विज्ञान की ओर खींचने लगी। 2010 से ज्योतिष अध्ययन की यात्रा शुरू हुई, और आज तक अनवरत जारी है।
ज्योतिष की सैंकड़ों पुस्तकों का अध्ययन करते समय पाश्चात्य ज्योतिष की ओर जिज्ञासा बढ़ी क्योंकि ये पुस्तकें बाजार में हिंदी भाषा में उपलब्ध नहीं हैं। आम तौर पर हमारे देश के ज्योतिषी पाश्चात्य ज्योतिष को केवल श्सन साइन और मून साइनर पर आधारित मानते हैं और उसको गंभीरता से नहीं लेते हैं। बहुत अधिक गहराई से साठ से अधिक पाश्चात्य पुस्तकें पढ़कर ज्ञात हुआ कि पाश्चात्य ज्योतिष ने भी वैदिक ज्योतिष को अपना कर तथा उसका प्रयोग कर बहुत कुछ शोध किया है।
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