'घाचर-घोचर' कन्नड़ भाषा से हिन्दी में अनुवादित एक विशिष्ट उपन्यास है। इस उपन्यास के बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स बुक रिव्यू ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि 'नैतिक पतन की भयावह कहानी का प्लॉट लिए हुए 'घाचर-घोचर' इस दशक के बेहतरीन भारतीय उपन्यास के रूप में घोषित किया गया है... इस उपन्यास के प्रशंसकों, सुकेतु मेहता और कैथरीन बू ने शानभाग की तुलना चेखव से की है।' निश्चित रूप से 'घाचर-घोचर' उपन्यास और इसके लेखक के लिए यह बड़े ही गर्व का विषय है कि इस उपन्यास को इस क़दर ख्याति मिल रही है। आयरिश टाइम्स के आइलिन बैटरस्बी का इस उपन्यास के विषय में कहना है कि यह कार्य विवेक शानभाग के बेहतर साहित्यिक कार्यों में से एक है। इसी कड़ी में 'न्यू यॉर्कर' की टिप्पणी 'इस त्रासदीय उपन्यास की क्लासिक कहानी, पूँजीवाद और भारतीय समाज, दोनों के लिए एक दृष्टान्त है।' इस उपन्यास के बारे में 'द पेरिस रिव्यू' ने लिखा 'घाचर-घोचर' हमें एक विषय-विशेष के साथ पेश करता है।' इसी प्रकार गिरीश कर्नाड, द इण्डियन एक्सप्रेस के विचार भी महत्त्वपूर्ण हैं। वह लिखते हैं- 'श्रीनाथ पेरूर का अनुवाद उपन्यास की बारीकियों को पकड़ते हुए शानभाग के लेखन को और भी समृद्ध करता है। मूल कन्नड़ को पढ़ने और प्रशंसा करने के बाद मुझे आश्चर्य हुआ कि यह एक अनुवाद था।' इस उपन्यास को लेकर अनेक विद्वानों व पत्र-पत्रिकाओं के रिव्यूज़ देखने को मिलते हैं जो इस उपन्यास की सफलता को बयाँ करते हैं। ऐसा ही एक रिव्यू प्रज्वल पराजुल्य, द हिन्दुस्तान टाइम्स का है जो अवश्य देखा जाना चाहिए। उनके अनुसार 'बहुत ही कम पुस्तकें ऐसी होती हैं जो पाठकों और अपाठकों के हाथों में एक साथ होती हैं। 'घाचर-घोचर' एक ऐसी ही पुस्तक है।' -
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- PublisherVani Prakashan
- Publication date2018
- ISBN 10 9387889874
- ISBN 13 9789387889873
- BindingPaperback
- Number of pages104
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