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Devgarh Ki Muskan (& Kabhi Na Kabhi) (Hindi Edition) - Hardcover

 
9788173151910: Devgarh Ki Muskan (& Kabhi Na Kabhi) (Hindi Edition)
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बुद्धा हाथ जोड़कर बोला, ' यह मेरी बहिन तिनकी हें और यह छोटा भाई मिट्ठू है । हम तीनों पहले मंदिर में फूल चढ़ाने के लिए गए थे, क्योंकि भगवान् बहुत बड़े हैं; परंतु पुजारियों ने नाहीं कर दी.. । ' ' पुजारियों ने फूल चढ़ाने से नाहीं कर दी! कौन से मंदिरों के पुजारियों ने?' राजा ने आश्‍चर्य के साथ प्रश्‍न किया । तिनकी बोल पड़ी, ' विष्णु भगवान् के मदिरवालों ने, सबने- ' बुद्धा ने रोका, ' ठहर जा! बीच में मत बोल । ' और राजा को उत्तर दिया, ' महाराज, नगर के बड़े मंदिरों पर हम लोग गए । भीतर कहीं नहीं घुस पाए । ' राजा सोचने लगे-सहरियों के छुए ये फूल भी अपवित्र माने गए! हम इस दुराग्रह को मिटाकर रहेंगे । बाण से कैसे भी शत्रु को धराशायी कर सकते हैं तो क्या इस कुरीति को नहीं मिटा सकेंगे?. .बोले, ' हम विष्णु मंदिर में इन फूलों को चढ़ाने के लिए चलेंगे । ये तीनों साथ रहेंगे । ' उन्होंने उन सहरियो की ओर उँगली से संकेत किया । अनेक जनों को खटका-राजा क्या धर्माचार पर भी बाण चलाएँगे? राजा, रानियों और राजकुमारों ने हाथ-पैर धोकर सहरियों से फूल लिये और मंदिर के भीतर जाकर मूर्ति पर फूल चढ़ाए । राजा ने सहरियों को अंदर बुलाया । पुजारियों ने हाथ जोड़कर निषेध किया । राजा ने कहा, ' इनके छुए फूल भगवान् पर चढ़ा दिए तो ये क्यों नहीं भीतर आ सकते?'

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  • PublisherPrabhat Prakashan
  • Publication date2011
  • ISBN 10 8173151911
  • ISBN 13 9788173151910
  • BindingHardcover
  • Number of pages270

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